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श्रीमान सेठ बहादुरमलजी सा. बांठिया

श्रीमान सेठ बहादुरमलजी सा. बांठिया

श्रीमान सेठ बहादुरमलजी सा. बांठिया संक्षिप्त परिचय: स्थानकवासी सम्प्रदाय के पुराने नायकों का स्मरण करने पर भीनासर (बीकानेर) के श्रीमान सेठ बहादुरमलजीसा. बांठिया का नाम अवश्य याद किया जाता है। आपने अपने जीवनकाल में समाज की बहुमूल्य सेवाएँ की हैं।समाज की अनेक प्रसिद्ध संस्थाओं के साथ आपका घनिष्ठ संबंध रहा है।सेठ बहादुरमलजी सा. आदर्श गुणों से युक्त महानुभाव थे। आपके हृदय की उदारता, सदाचारिता, सरलता औरसेवा प्रेम अणुकरणीय रहे हैं। भीनासर के बांठिया-वंश में उदारता तो परम्परागत वस्तु बन गई है। सेठबहादुरमलजी सा. को भी वसीयत में मिली थी। सेठजी के पितामह श्री हजारीमलजी बांठिया ने तत्कालीन समयमें एक लाख, एकतालीस... ...
आदर्श शिक्षालय श्री जवाहर विद्यापीठ

आदर्श शिक्षालय श्री जवाहर विद्यापीठ

आदर्श शिक्षालय श्री जवाहर विद्यापीठ भीनासर: हुक्म संघ के षष्ठम आचार्य ज्योर्तिधर श्री जवाहरलाल जी महाराज एक महान क्रांतिकारी क्रांतद्रष्टायुगपुरुष हुए थे। अपने जीवन के अन्तिम दो वर्ष स्वास्थ्य अनुकूल न होने से सेठ हमीरमल जी बाँठियास्थानकवासी जैन पौषधशाला में विराजे और आषाढ़ शुक्ला अष्ठमी संवत् २००० को इसी पौषधशाला के हॉल मेंउन्होंने संथारा पूर्वक अपनी देह का त्याग किया। उनकी महाप्रयाण यात्रा के बाद चतुर्विध संघ द्वारा एकश्रद्धांजलि सभा सेठिया कोटड़ी बीकानेर में आयोजित की गई थी जिसमें उनके भक्त भीनासर के सेठचम्पालालजी बाँंठिया ने उनकी स्मृति में ज्ञान दर्शन चरित्र की आराधना हेतू एक जीवन्त स्मारक बनाने कीअपील पूरे... ...

संयम साधना के शिखर पुरूषअवधुत श्री पूर्णानन्दजी

संयम साधना के शिखर पुरूषअवधुत श्री पूर्णानन्दजी वह परम चिन्मयी सत्ता जिसने यह उपलब्ध कर लिया न मैं नामरूप हूँ, न ये नामरूप मेरे हैं, मैं अखण्ड, अद्वैतसच्चिदानन्द ब्रह्म हूँ' ऐसी चिन्मयी सत्ता इस संसार से चले जाने पर भी ज्यों-की-त्यों अखण्ड रह जाती है। घड़े केफूटने से आकाश नहीं फूट जाता, वह न तो घड़े का बन्दी था न उसका मुखापेक्षी। नाम और रूप की मिथ्याग्रन्थियों से छूट कर वह अपने अखण्डानन्द स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही उस ब्रह्मविद्‌-निष्ठ के लिए भीसत्य है जिसे जगत संत शिरोमणि पूर्णानन्दजी महाराज ‘बापजी' के नाम से जानते हैं।श्री १००८ अवधूत संत... ...
‘रिंणी’ तारानगर की प्राचीनता

‘रिंणी’ तारानगर की प्राचीनता

‘रिंणी’ तारानगर की प्राचीनता ‘रिंणी’ तारानगर की प्राचीनता १६ मार्च १९४१ ई. को यहाँ के जनहितैषी शासक तारासिंह जी के नाम पर चुरु जिले का कस्बा ‘तारानगर’ बना था, इससे पहले इस परिक्षेत्र का नाम ‘रिंणी’ था। ‘‘रिंणी’’ का नाम आते ही उत्सुकता रहती है कि ‘रिंणी’ नाम कब व क्यों पड़ा था यथा अलवर में रीणी भी है। ‘रिणी’ जियोलोजीकल शब्द है, जिसका अर्थ है कि जल शुष्क होने से बने रेतीले मैदान को ‘रिन’ ‘रिंणी’ ‘रैनी’ ‘रैणी’ (बोली के कारण) कहेंगे, ईसा से लगभग २००० वर्ष पूर्व (जब भी नदियां शुष्क हुई) यानी आज से लगभग ४००० वर्ष पूर्व... ...
महाराजा डूँगरसिंह बीकानेर

महाराजा डूँगरसिंह बीकानेर

बीकानेर राज्यबीकानेर राज्य की तत्कालीन डूँगरगढ़ तहसील के संबंध में भी राय बहादुर हुक्म सिंह सोढ़ी ने कतिपय मूल्यवान तथ्यात्मक जानकारियां अपनी कृति में समाहित की है। सोढ़ी लिखते हैं कि डूँगरगढ़ तहसील में कुल ७९ गांव हैं जिनमें से तीन गांव खालसा श्रेणी के हैं जबकि शेष सभी गांव पट्टेदारों के जागीरी गांव है। उन्होंने लिखा है कि डूँगरगढ़ तहसील की कुल जनसंख्या ४४००७ है, जिसमें २२०६३ पुरुष तथा २१४०४ महिलाएं है, वे यह भी लिखते हैं कि इस आबादी में ४१०५३ हिंदू तथा ११२१ मुस्लिम हैं जबकि १८३३ लोग अन्य जातियों से हैं, यहां पर स्थित डाकखानों तथा पोलिस... ...