

लाडनूं मारवाड़ का गौरव
मारवाड़ के नागौर क्षेत्र की भूमि जो देश प्रेम, त्याग, शौर्य और बलिदान की अमर गाथाओं की वजह से दुनिया भर में मशहूर है, वहीं लोक कला, साहित्य, संस्कृति और स्थापत्य के क्षेत्र में भी सदा जानी जाती रही है, इसी ज़िले का ‘लाडनूं’ शहर अपनी नैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और सामाजिक चेतना तथा आध्यात्मिक दृष्टि से भी काफ़ी समृद्ध रहा है। विश्व चर्चित सभी राजस्थानी परिवार की पत्रिका ‘मेरा राजस्थान’ के प्रबुद्ध पाठकों को प्रस्तुत विशेषांक में ‘लाडनूं’ की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि से रूबरू करवाते हैं: ‘लाडनूं’ ज़िला मुख्यालय नागौर से १००, जोधपुर से २५० और जयपुर से २१० किमी......
धर्म की ऐतिहासिक नगरी ‘लाडनूँ’
राजस्थान के नागौर जिले का प्रसिद्ध नगर है `लाडनूँ’, जो राजस्थान के नागौर जिले के उत्तरी-पूर्वी छोर पर बसा हुआ है, इतिहास कहता है कि प्राचीन काल में यह गंधर्व वन कहलाता था, क्योंकि गांधार लोग यहां क्रीड़ा करने के लिए आते रहते थे। महाभारत काल में यह एक विशिष्ट सामरिक सुरक्षा स्थल माना जाता था, जिससे इसे महाभारत कालीन में ‘नागरी’ भी माना जाता है। थली प्रदेश, नौवंâूटी मारवाड़ एवम् शेखावाटी का संगम-स्थल यह कस्बा जोधपुर-दिल्ली रेलवे मार्ग पर स्थित है, समुद्र तल से यह ३२९ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। ‘लाडनूँ’ का प्राचीन नाम ‘चंदेरी’ भी रहा, इसके......
लजीज व्यंजनों के लिए मशहूर है लाडनूँ
नागौर जिले का ‘लाडनूं’ कस्बा यूं तो अपनी विभिन्न विशेषताओं से देश प्रदेश में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। खान पान के मामले में भी यहां के व्यंजनों का स्वाद मुंह में पानी ला देता है। मिठाई की बात करें या फिर नमकीन की, चाहे बात हो सौंफ की, यहां के व्यंजनों की सुगंध दूर बसे प्रवासी भी नहीं भूल पाते, इस विशेषता के पीछे यहां के कुछ प्रसिद्ध हलवाई जुड़े हैं, जिनके नाम से ही नगर की पहचान भी जुड़ी हुई है। रामेश्वर के रसगुल्ले स्टेशन रोड पर स्थित एक दुकान पर दिनभर रसगुल्ले लेने वालों की कतार लगी रहती......
प्राच्यविद्या सम्मेलन
अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक, मानवता के मसीहा, इन्दिरागांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से पुरष्कृत आचार्य तुलसी ने एक स्वप्न देखा कि जैन धर्म का भी एक ऐसा विश्वविद्यालय होना चाहिए जो प्राच्यविद्याओं विशेषकर जैनविद्या एवं आगमविद्या को सुरक्षित, संरक्षित, पुष्पित एवं पल्लवित कर सके। यह स्वप्न साकार हुआ जब २० मार्च, १९९१ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर, मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार ने जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूँ को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्रदान की और विश्वविद्यालय के मान्य संविधान के अनुसार आचार्य तुलसी इसके प्रथम अनुशास्ता बने। महान दार्शनिक विभूति, महान साहित्यकार, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के......
प्राच्यविद्या सम्मेलन
युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी इस युग के क्रान्तिकारी आचार्यों में एक थे। जैन धर्म को जन धर्म के रूप में व्यापकता प्रदान करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वे तेरापंथ धर्मसंघ के नौवें आचार्य हुए। आचार्य श्री तुलसी का जन्म वि.सं.१९७१ कार्तिक शुक्ला द्वितीया को लाडनूं (राजस्थान) में हुआ। उनके पिता का नाम झूमरमलजी खटेड़ एवं माता का नाम वदनां जी था। नौ भाई बहनों में उनका आठवां स्थान रहा। प्रारम्भ से ही वे एक होनहार व्यक्तित्व के धनी रहे थे। वि.स.१९८२ पौषकृष्णा पंचमी को लाडनूं में ग्यारह वर्ष की अवस्था में पूज्य कालूगणी के करकमलों से उनका दीक्षा-संस्कार सम्पन्न हुआ।......