प्राच्यविद्या सम्मेलन
अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक, मानवता के मसीहा, इन्दिरागांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से पुरष्कृत आचार्य तुलसी ने एक स्वप्न देखा कि जैन धर्म का भी एक ऐसा विश्वविद्यालय होना चाहिए जो प्राच्यविद्याओं विशेषकर जैनविद्या एवं आगमविद्या को सुरक्षित, संरक्षित, पुष्पित एवं पल्लवित कर सके। यह स्वप्न साकार हुआ जब २० मार्च, १९९१ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सिफारिश पर, मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार ने जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूँ को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्रदान की और विश्वविद्यालय के मान्य संविधान के अनुसार आचार्य तुलसी इसके प्रथम अनुशास्ता बने। महान दार्शनिक विभूति, महान साहित्यकार, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के......
प्राच्यविद्या सम्मेलन
युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी इस युग के क्रान्तिकारी आचार्यों में एक थे। जैन धर्म को जन धर्म के रूप में व्यापकता प्रदान करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वे तेरापंथ धर्मसंघ के नौवें आचार्य हुए। आचार्य श्री तुलसी का जन्म वि.सं.१९७१ कार्तिक शुक्ला द्वितीया को लाडनूं (राजस्थान) में हुआ। उनके पिता का नाम झूमरमलजी खटेड़ एवं माता का नाम वदनां जी था। नौ भाई बहनों में उनका आठवां स्थान रहा। प्रारम्भ से ही वे एक होनहार व्यक्तित्व के धनी रहे थे। वि.स.१९८२ पौषकृष्णा पंचमी को लाडनूं में ग्यारह वर्ष की अवस्था में पूज्य कालूगणी के करकमलों से उनका दीक्षा-संस्कार सम्पन्न हुआ।......
ठाणे अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट
अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट, ठाणे (R) के द्वारा २८ जून को राज दीदी (श्री राजेश्वरी मोदी) के मुखारविंद से अमृतवाणी (सदा खुश रहने का मंत्र) काशीनाथ घाणेकर नाट्यग्रह में संपन्न हुआ, जिसमें करीब १२०० भक्तों ने अमृतवाणी का लाभ लिया। ट्रस्ट के पदाधिकरी श्री कैलाश जी गोयल, श्री सांवरमल अग्रवाल, श्री विकास बंसल, श्री पवन अग्रवाल, श्री जितेंद्र अग्रवाल, श्री संजय अग्रवाल, श्री सुनील टिबड़ेवाल के अथक प्रयासों से कार्यक्रम बहुत सफल रहा। ठाणे में राज दीदी का यह पहला कार्यक्रम रहा, जिसको सभी लोगों ने बहुत सराहा। कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के सभी पदाधिकारियों ने चार महीनों अथक परिश्रम......
शिल्प ही जीवन का आधार, शिल्प बिना सूना संसार
शिल्प और शिल्पियों का मानव जीवन में बहुत महत्व है, एक किसान से लेकर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, मेवैâनिकल, ऋषिमुनि व साधु सन्तों के जीवन में भी शिल्पियों का आधार है, संसार का कोई भी निर्माण कार्य का आधार शिल्प ही है, इस संसार में मील, कारखाना, उद्योग, कम्प्यूटर, मशीन, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी निर्माण में विश्वकर्मा वंशियों की ही देन है। विश्वकर्मा जी कला, विज्ञान एवं शिल्प की दृष्टि से अग्रणीय थे, उपलब्ध साहित्य में उनके विज्ञान एवं शिल्प चातुर्य को देखकर सब चकित हो जाते हैं, उस समय की कला व विज्ञान, अत्यधिक उन्नत अवस्था को प्राप्त थी। विश्वकर्मा ने देवों के......