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अनन्त चतुर्दशी का व्रत

अनन्त चतुर्दशी का व्रत

अनन्त भगवान् का स्मरण करता हुआ वह पूजा की तैयारी करे। आँगन में बेदी बनाकर उसे गोबर से लीपे और उसके उपर रखकर अष्टदल लिखे अगर बेदी नहीं बनावें तो पाटिया काम में लेवें। अष्टदल पर सोना, चाँदी, ताँबा अथवा मिट्टी की स्थापना करें, उसके पास कच्चे सूत का, १४ तार का, १४ गाँठों का डोरा रखें। भ में आम, अशोक, गूलर, पीपल और बड़ के पत्ते रखें, फिर शुद्ध आसन पर बैठकर तीन आचमन करें। प्रणायाम करके यह संकल्प करें कि ‘मैं अपने कुटुम्ब तथा अपने कल्याण, आरोग्य, आयु और चतुर्विध पुरूषार्थ की सिद्धि के लिए भगवान् अनन्त का व्रत......
सातुड़ी तीज

सातुड़ी तीज

हमेशा वेश्या के घर जाता था | वो कोढ़ी था, जिससे उसकी पत्नी उसे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाती और वो कहता अब तू जा, तो वो चली जाती, ऐसे करते-करते भादवे की तीज आई, वो गेहूँ पीसने बैठी थी इतने में उसका पति आया और बोला...
दधीचि तीर्थ नेमिषारण्य नव निर्माण के लिये पधारें

दधीचि तीर्थ नेमिषारण्य नव निर्माण के लिये पधारें

नैमिषारण्य महर्षि दधीचि की तपस्थली रही, शिव के परम भक्त दधीचि यहाँ दधिचेश्वर महादेव की नित्य पूजा करते थे, यहीं पर वृत्रासुर को मारने के लिए इन्द्र को वज्र बनाने हेतु अस्थिदान दिया गया था, समस्त तीर्थों के स्नान, दर्शन की इच्छा को पूरा करने के लिए इन्द्र ने सभी तीर्थों को यहां आमंत्रित किया, इसीलिये यह स्थान ‘मिश्रित तीर्थ’ कहलाता है, यहीं पर दधीचि ने अश्विनीकुमारों को मधु विद्या का ज्ञान दिया था, यहीं पर महर्षि पत्नी सुवर्चा (वेदवती) ने पिप्पलाद को गर्भ से निकालकर महर्षि दधीचि के शरीर के साथ आत्मोसर्ग किया था तथा माँ दधिमथी ने बालक पिप्पलाद......
स्वार्थ में अंंधे ना होकर राष्ट्र कल्याण के बारे में भी सोचना चाहिए

स्वार्थ में अंंधे ना होकर राष्ट्र कल्याण के बारे में भी सोचना चाहिए

के आने पर दान में विलम्ब हो सकता है, उन्होंने महादान ‘अस्थिदान’ किया जिस अस्थियों द्वारा ८२० राक्षसों का संहार हुआ। श्री सावित्री खानोलकर ने वीरता के लिये पहचाने जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ का प्रारुप बनाते वक्त महर्षि दधीचि से प्रेरणा ली गयी थी। परमवीर चक्र के एक और उन्होंने वङ्का बनाया (वङ्का बनाने के लिये महर्षि ने अस्थिदान किया था) और दूसरी और शिवाजी की तलवार बनाई गई। यह परमवीर चक्र १६ अगस्त १९९९ को अस्तित्व में आया...
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