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सितम्बर सितम्बर

सितम्बर सितम्बर

( हेलो! मेरा राजस्थान ) जगत नारायण जोशी पूर्व राज्यमंत्री सलाहकारइंदौर, मध्यप्रदेश, भारतभ्रमणध्वनि: ९४२५०५४९७० महाष्र् दधीच न सिर्प दानवीर रहे बल्कि श्रेष्ठ न्यासी के रूप में समाज के सम्मुख उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया, देवताओं द्वारा सुरक्षित रखने हेतु दिए गए दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की रक्षा के लिए अपने तपोबल से उन्हें अपने शरीर में धारण किया, जब  देवताओं को इस शस्त्रों की आवश्यकता हुई तो अपने शरीर का त्याग कर वङ्का रूपी शस्त्र प्रदान किया। महर्षि दधीच को प्रथम न्यासी के रूप में जाना जाता है, उन्होंने मानव कल्याण हेतु व वत्रासुर के कष्टों से समाज की रक्षार्थ अपने शरीर का त्याग... ...
सुख समृध्दि व शक्ति–उपासना का महापर्व नवरात्र

सुख समृध्दि व शक्ति–उपासना का महापर्व नवरात्र

भूत प्राणियों में शक्तिरुप होकर निवास करती है उसको पृथ्वी के समस्त प्राणियों का नमस्कार है। सृष्टि की आदि शक्ति है मॉ दुर्गा। देवताओं पर मॉ भगवती की कृपा बनी रहती है। समस्त देव उन्हीं की शक्ति से प्रेरित होकर कार्य करते हैं, यहां तक ब्रह्मा, विष्णु और महेश बिना भगवती की इच्छा या शक्ति से सर्जन, पोषण एवं संहार नहीं करते, परमेश्वरी के नौ रुप हैं, इन्हीं की नवरात्रा में पूजा होती है। धर्माचार्यों के अनुसार साल–भर में चार बार नवरात्रा व्रत पूजन का विधान है। चैत्र, आषाढ, अश्विन और माघ का शुक्ल पक्ष, इसमें चैत्र व अश्विन प्रमुख माने... ...
मानव सेवा का केंद्र अग्रसेन धाम

मानव सेवा का केंद्र अग्रसेन धाम

दिनांक २५ जनवरी सन् २००९, देश और समाज की वर्तमान परिस्थिति में, संस्कृति और संस्कारों के विघटन को रोकने हेतु, स्त्री शिक्षा की अनिर्वायता को देखते हुए कर्मयोगी पुष्करलाल केडिया के मन में एक उच्च स्तरीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प उदय हुआ। संकल्प को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए सर्वप्रथम भूमि की आवश्यकता होती है, कोलकाता महानगर के आसपास उपयुक्त भूमि-खंड प्राप्त होना भी एक समस्या है, इस समस्या को हल करने के लिए ईश्चरीय प्रेरणा स्वरूप आगे आये प्रसिद्ध उद्योगपति श्री प्रह्लाद राय गोयनका, उन्होंने हावड़ा के बागनान में अपनी १०० बीघा जमीन दान देने की इच्छा... ...
एक र्इंट-एक रुपये’ की आज जरूरत है

एक र्इंट-एक रुपये’ की आज जरूरत है

अपने युग की एक महान विभूति थे, वे एक कुशल राजनीतिज्ञ थे, पराक्रमी योद्धा थे और प्रजा के हितकारी सह्रदय राजा थे। अपनी प्रजा एवं राज्य की सुरक्षा के लिये उन्होंने सुरक्षित अग्रोहा नगर बसाया, सुदृढ़ कोट से घिरा नगर, जिसमें करीब सवा लाख से भी अधिक घरों की बस्ती थी, उनके सबल हाथोें में प्रजा सुरक्षित थी, इसीलिए नागरिक निश्चिन्त होकर अपने काम-धन्धे में लगे रहते थे। `अग्रोहा’ पूर्णत: वैश्य-राज्य था, व्यापारियों, किसानों, कर्मकारों शिल्पकारों और उद्योग-धन्धे करने वालों का राज्य। वैश्य होते हुए भी महाराज अग्रसेन क्षत्रियों से भी अधिक कुशलता से शासन का संचालन करते थे। राज्य दिनों-दिन... ...
महाराजा अग्रसेन का युगीन संदेश

महाराजा अग्रसेन का युगीन संदेश

महापुरूष अपने जीवन में कुछ ऐसे आदर्शों की स्थापना करते हैं जो चिर युगीन हो जाते हैं, आने वाले युगों में राष्ट्र या समाज उनका अनुकरण कर अपने जीवन को मुदमंगलमय बनाता है, वे महापुरूष मात्र वाणी से आदर्शों की व्याख्या नहीं करते अपितु उन्हें अपने जीवन में कर्म से भी उतारते हैं। ऐसे महापुरूषों को हम मर्यादा पुरूषोत्तम राम, योगेश्वर कृष्ण, बुद्ध, महावीर स्वामी, चाणक्य, महात्मा गाँधी आदि के नाम से जानते हैं। ऐसे ही युगपुरूषों में महाराजा अग्रसेन का नाम अत्यन्त श्रद्धा से लिया जाता है। महाराज अग्रसेन का उद्भव द्वापर एवं कलियुग के संधिकाल में हुआ था। महाभारत... ...
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