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दीपावली पर लक्ष्मीपूजन व्रत

दीपावली पर लक्ष्मीपूजन व्रत

दीपावली अथवा लक्ष्मीपूजन का व्रत और महोत्सव आज लोकमानस में इस प्रकार रम गया है कि उसे उससे पृथक् करने की कल्पना नहीं की जा सकती, इस भारतीय महोत्सव पर यदि कार्तिक कृष्ण अमावस चित्रा और स्वातियोग में हो तो उसे उत्तम माना गया है, इसके पूजन और अनुष्ठान के सभी कार्य यदि उस योग में किया जाये तो वे अत्यन्त सुखदायी फल देने वाले समझे जाते हैं, यह एक प्रकार का लक्ष्मी-व्रत ही है क्योंकि भारत में महालक्ष्मी को केन्द्रवर्ती बनाकर ही इसके सभी आयोजन क्रियान्वित होते हैंं। विधि-विधान : प्रात:काल जल्दी उठकर तेल मालिश अथवा उबटन कर स्नानादि से......
दीपदान की महिमा निराली

दीपदान की महिमा निराली

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी ‘धनतेरस‘ कहलाती है, इस दिन चांदी का बर्तन खरीदना अत्यन्त शुभ माना गया है, वस्तुत: यह यमराज से संबंध रखने वाला व्रत है, इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य द्वार पर एक पात्र में अन्न रख कर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख दीपदान करना चाहिए तथा उसके गन्ध आदि से पूजन करना चाहिए, दीपदान करते समय निम्नलिखित प्रार्थना करनी चाहिए, इस प्रकार मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्भया सह त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीयतामिती यमुना जी यमराज की बहन हैं, इसलिए धनतेरस के दिन यमुना स्नान का भी विशेष महातम्य है, यदि पूरे दिन का व्रत......
दीपावली और लक्ष्मी पूजन का महत्व

दीपावली और लक्ष्मी पूजन का महत्व

भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है, यहां पर सभी धर्म के मानने वालों को रहने व अपने-अपने धर्म के अनुसार विभिन्न त्यौहारों को मनाने का संवैधानिक अधिकार है। सबके अपने अलग-अलग प्रिय पर्व हैं जैसे मुस्लिम धर्म के मानने वाले ईद, क्रिश्चिन-क्रिसमस, सिक्ख-गुरुनानक जयंती को अपना विशेष त्यौहार मानते हैं उसी प्रकार हिंदू धर्म में होली, दिवाली, दशहरा आदि पर्वों का विशेष महत्व है। भारतीय सभ्यता व संस्कृति के इतिहास में अनादिकाल से भारतवर्ष में दिवाली पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा चली आ रही है- रामायण हिन्दुओं का पवित्र महाग्रंथ है जिसे महाकवि महर्षि बाल्मिकि......
शत्रुओं का विनाश करने वाला पर्व विजयादशमी

शत्रुओं का विनाश करने वाला पर्व विजयादशमी

आसोज सुदी दशमी को विजयादशमी कहते हैं, इस दिन तीसरे प्रहर (अपराह्नकाल) में दशमी होना जरुरी है, अगर नवमी के अपराह्न में ही दशमी होती है तो यह दिन मान्य है अन्यथा यदि दशमी के तीसरे प्रहर में दशमी रहे तो वही सही मानी जाती है, यदि दशमी दो हों तो अपराह्र में रहने वाली दशमी ही ग्राह्य है, यदि अपराह्न में श्रवण नक्षत्र हो तो वह और भी उत्तम माना जाता है, दोनों ही दिन यदि श्रवण नक्षत्र आ जाये तो वह और अधिक श्रेष्ठ होता है। श्रवण नक्षत्र में दशमी का योग ‘विजय-योग’ कहलाता है इसलिए इस दशमी को......
सुख, समृध्दि व शक्ति–उपासना का महापर्व ‘नवरात्र’

सुख, समृध्दि व शक्ति–उपासना का महापर्व ‘नवरात्र’

जो देवी सर्व–भूत प्राणियों में शक्तिरुप होकर निवास करती है उसको पृथ्वी के समस्त प्राणियों का नमस्कार है। सृष्टि की आदि शक्ति है मॉ दुर्गा। देवताओं पर मॉ भगवती की कृपा बनी रहती है। समस्त देव उन्हीं की शक्ति से प्रेरित होकर कार्य करते हैं, यहां तक ब्रह्मा, विष्णु और महेश बिना भगवती की इच्छा या शक्ति से सर्जन, पोषण एवं संहार नहीं करते, परमेश्वरी के नौ रुप हैं, इन्हीं की नवरात्रा में पूजा होती है। धर्माचार्यों के अनुसार साल–भर में चार बार नवरात्रा व्रत पूजन का विधान है। चैत्र, आषाढ, अश्विन और माघ का शुक्ल पक्ष, इसमें चैत्र व अश्विन......
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