मुख्यपृष्ठ

महाराजा अग्रसेन

महाराजा अग्रसेन

अग्रवाल सेवा समाज, मुंबई द्वारा महाराजा अग्रसेन जी की ५१४३ वीं जयंती पर दिनांक १० अक्टूबर २०१८ को कुलदेवी महालक्ष्मी जी, महाराजा अग्रसेन जी, १८ राजकुमार, फलों से युक्त अनेक मनोहारी झॉ कियों एवं बैण्डबाजे से सुशोभित भव्य शोभा यात्रा का आयोजन किया गया। शोभा यात्रा अग्रसेन भवन ठाकुरद्वार से प्रारम्भ होकर सी.पी. टेंक, भूलेश्वर, कॉटन एक्सचेंज होती हुई कालबादेवी स्थित जूनी हालाई भाटिया महाजनवाडी पर स्वागत समारोह पुरस्कार वितरण एवं सहभोज के साथ सम्पन्न हुआ। सम्माननीय उद्घाटक राज के पुरोहित मंत्री महाराष्ट्र सरकार, समारोह अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी-अध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य अग्रवाल सम्मेलन, स्वागताध्यक्ष चन्दकिशोर पोद्दार अध्यक्ष-अ.भा.व.मा.अग्र.जा.कोश, आकाश राज के. पुरोहित-नगर... ...
तुलसी विवाह कर कन्यादान का

तुलसी विवाह कर कन्यादान का

तुलसी विवाह एक पूजोत्सव है जो तुलसी और विष्णु के विवाह का उत्सव है। कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार है, कहा जाता है कि भाद्रपद माह एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर राक्षस को मारा था और विपुल परिश्रम करने के कारण उसी दिन सो गए थे, अत: इसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। भाद्रपद एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक कोई भी माँगलिक कार्य विवाह आदि नहीं हो सकते थे, तुलसी का विवाह सम्पन्न हो जाने के बाद ही सभी माँगलिक कार्य होने की सम्भावना बनती है। तुलसी एक पूजनीय वनस्पति... ...
‘लक्ष्मी’ के वास्तविक अर्थ को समझना

‘लक्ष्मी’ के वास्तविक अर्थ को समझना

दीपावली के रात को जो हम पूजा करते हैं, उसे साधारण शब्दों में ‘लक्ष्मी पूजन’ कहा जाता है, आज ज्यादातर लोग समझते हैं कि लक्ष्मी का अर्थ है धन की देवी या रुपया-पैसा, जो कि बहुत ही संकुचित अर्थ हो गया है। वास्तव में इस शब्द का अर्थ बहुत गहरा व विशाल है, जिसे समझना बहुत जरुरी है। लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘लक्ष’ धातु से हुई है। लक्ष का शाब्दिक अर्थ है ‘लक्ष्य’, जीवन के लक्ष्य की ध्यान पूर्वक खोज इत्यादि, इसका अर्थ ये है कि जब हम मन कर्म वचन से एकाग्रचित्त होकर कोई कार्य करते हैं तो... ...
‘लक्ष्मी’ के वास्तविक अर्थ को समझना

‘लक्ष्मी’ के वास्तविक अर्थ को समझना

दीपोत्सव एक बहुआयामी पर्व है जिसमें हम श्री गणेश, दीप, भगवती लक्ष्मी, विष्णु भगवान, यम, धन्वंतरी, कुबेर तथा मां सरस्वती की वंदना करते हैं। प्राचीन भारतीय साहित्यानुसार दीपावली का पुराना नाम नवसम्येष्टि पर्व है जो नवीन सावनी फसल के आगमन से प्रसन्न कृषि प्रधान भारत वर्ष में नयी फसल के स्वागत के लिये दीपों का उत्सव दिवाली मनाया जाता है तथा अत्याधिक वर्षा से विकृत मलिन वायु मंडल का शुद्धि के लिये घी के दीये एवं ब्रहत यज्ञों में नये अन्न की आहुति देकर प्रभू का धन्यवाद किया जाता है, इसके अलावा समुद्रमंथन में भगवती लक्ष्मी के प्रकट होने की प्रसन्नता... ...
सूर्यनारायण काबरा, मलाद, सूर्य से सूर्य तक जाएं

सूर्यनारायण काबरा, मलाद, सूर्य से सूर्य तक जाएं

राजस्थान के लक्ष्मणगढ़ के मूल निवासी सत्यनारायण जी ने ०४ जनवरी १९२६ को माता कृष्णादेवी की पवित्र कोख से जन्म लिया और इसी के साथ एक अविश्वसनीय महागाथा की शुरूआत हुई। मात्र १६ वर्ष की किशोरावस्था में मुंबई आए। मुंबई में उनके पिता बंशीधरजी उस समय के कॉटन सेठ गोविंदराम सेक्सरिया के यहां हैड थे। सन १९४७, जब देश में आजादी का बिगुल बजा और सारा देश खुशी और आनंद से झूम उठा, इसी ऐतिहासिक यादगार वर्ष में आप गीता देवी के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। आप दोनों के जीवन की ये खुशियां वक्त बीतने के साथ निरंतर बढ़ती... ...